सन्त उमाकान्त जी महाराज ने बताये किन-किन श्रेणियों के जीव सन्तों के पास आते हैं

कर्म खराब होने, समरथ गुरु के न मिलने पर कर्मोंनुसार नरकों में लाखों-करोड़ों वर्षों तक सजा भोगनी पड़ती है

गैर सतसंगी, अंडा, शराब, मांस का सेवन करने वालों से कुछ भी सेवा मत लेना

रेवाड़ी (हरियाणा)
निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता दयालु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 5 दिसंबर 2022 सायं बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सन्देश में बताया कि सेवा के साथ भी भजन जरुरी है। सन्तों के पास कई तरह के जीव आते हैं।

एक ऐसे जो अक्षरशः गुरु के आदेश का पूरा पालन करते हैं। ध्यान भजन चाहे थोड़ी ही देर करें, दरबार में चाहे हाजिरी ही लगावें, लेकिन करते हैं और हर तरह की सेवा, तन मन धन की सेवा भी करते हैं। एक ऐसे जो केवल सेवा ही करते हैं (लेकिन भजन ध्यान नहीं करते हैं) और कहते हैं कि सेवा के बल पर ही हम अपना काम बना लेंगे। तो समझो कि वह अपने पैर पर खड़े नहीं हो पाते हैं। जो कोई भी सुमिरन ध्यान भजन सेवा करते हैं वह अपने पैर पर खड़े हो जाते हैं। एक ऐसा होता है जिसको पकड़कर के, उठाकर के ले जाना होता है और दूसरा ऐसा होता है कि उसको कह दो चले जाओ तो चला जाता है। तो ये दुसरे किस्म वाले गुरु पर निर्भर रहते हैं। गुरु की दया से ही उनका काम होता है। ये गुरु के आदेश की पालना करके गुरु को खुश करते हैं तो गुरु उनको (निजधाम) ले जाते हैं। इन दोनों (तरह के जीवों को) को पार होने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती है। गुरु की दया उन पर होती रहती है जो बराबर सेवा में लगे रहते हैं। कुछ ऐसे जीव सुमिरन ध्यान भजन नियमित करते हैं लेकिन सेवा करने में उनको शर्म आती है। कहते हैं नाम दान दे दीजिए और नाम दान लेकर के हम भजन करेंगे, अपनी आत्मा का कल्याण कर लेंगे और आपके लिये हम तन मन धन से समर्पित हो रहे हैं। सब आपका, भाव से समर्पित करते हैं। देते नहीं है और न गुरु दुनिया की चीजों को लेते हैं। लेकिन उनका भाव वैसा रहता है कि गुरु का ही सब कुछ है, गुरु ही चलाएंगे, करेंगे तो उनको देर नहीं लगती है, गुरु की दया उन पर बराबर होती रहती है। कुछ ऐसे होते हैं जो इस इच्छा से (सन्तों के पास, सतसंग में) आते हैं कि हमको धन मान प्रतिष्ठा सम्मान मिल जाए। ये चीजें परमार्थ के रास्ते में बाधक होती है तो मारे शर्म के वह सेवा नहीं करते हैं वो। तो उनके फसने का डर रहता है। कुछ ऐसे होते हैं जो लगन के पक्के होते हैं। लगन के पक्के का मतलब- गुरु जिनको मान लिया, मान लिया। जयगुरुदेव नाम को मान लिया तो मान लिया कि यह भगवान प्रभु का नाम है। कोई भी निंदा बुराई करेगा तो उसका जवाब देंगे, मुकाबला भी कर लेते हैं तो वो जुड़े रहते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो न सेवा न भजन और न लगन के पक्के होते हैं और जहां जैसी धारा होती है वैसे बह जाते हैं। निंदा करने वाला मिल गया उसमें भी हां। और अगर प्रशंसा करने वाला मिल गया तो उसमें भी हां। समझो बेपेंदी के लोटा होते हैं। मतलब जैसे लोटे को सीधा रख दोगे तो हिलता-डुलता नहीं है और जिस लोटे में नीचे स्टैंड लगा हुआ नहीं रहता है तो वह इधर-उधर डीमला/गुडक/चला जाता है। उनका तो बड़ा मुश्किल हो जाता है।

उन पर तो जब गुरु की विशेष दया होती है तभी पार हो पाते हैं नहीं तो उनको लौट-लौट चौरासी आना ही पड़ता है। प्रेमियों सेवा, भजन भी करो और गुरु के प्रति बराबर श्रद्धा प्रेम रखो, आदेश पालन में लगे रहो, भक्ति बराबर करते रहो तो गुरु तुमको भगवान प्रभु से मिला देंगे। उनके पास सब युक्ति उपाय हैं। अभी तो हमको आपको उन्होंने दे दिया, यह उपाय बता दिया। लेकिन अगर प्रेम बना रहा, मजबूती बनी रही तो दया कर देंगे। निकलने में देर नहीं लगेगी। अगर कोई कमी भी रह गई अपनी तरफ से सेवा में भजन में तो गुरु की दया हो जाएगी, यमपुर की सैर तो नहीं करना पड़ेगा, उधर तो नहीं जाना पड़ेगा। मनुष्य शरीर से भी बचत हो जाएगी। मनुष्य शरीर भी अगर मिला तो भी तकलीफ ही तकलीफ है। देखो इस समय सब लोग दुखी हैं, बड़े कष्ट में हैं। तो दुखों का संसार बन गया है। दुखों की सृष्टि इस समय हो गई है।

गैर सतसंगी और मांसाहारी से कुछ भी सेवा मत लेना

महाराज जी ने 2 दिसंबर 2022 प्रातः बावल रेवाड़ी (हरियाणा) में बताया कि देखो जो सतसंगी नहीं हैं, नामदानी नहीं है, उनसे मत लो। और अगर कोई (कुछ देने की) इच्छा भी करता है तो कह दो पहले आप वहां चलो। सुनो, समझो उसके बाद फिर आपका सब कुछ कबूल है। और जो मांस मछली अंडा शराब का सेवन करते हैं उनसे कुछ भी मत लेना। उनसे तो हाथ जोड़ना कि हाथ जोड़कर विनय हमारी, तजो नशा बनो शाकाहारी। छोड़ो व्यभिचार बनो ब्रह्मचारी, सतयुग लाने की करो तैयारी। कह दो पहले आप लायक बन जाओ तो आपकी सब सेवा कबूल है। और आप सब प्रेमियों, चाहे गुरु महाराज के नामदानी हो और चाहे गुरु महाराज के जाने के बाद के नाम दानी हो, सब लोग मिलकर के गुरु महाराज का यह मंदिर बना लो। शुरुआत कर दिया गया है। अब बनाना आप सब लोगों को मिलकर के हैं। इसमें हर तरह के लोगों की जरुरत है। तन, मन, धन आदि सब सेवा है। गुरु को याद करके आप आदत डालो। नहीं कुछ होगा तो हम बताएँगे ही लोगों को चाहे फोन से, आते-जाते ही रहेंगे तो भी शरीर की सेवा होती रहेगी। अपनी मेहनत की कमाई का कुछ न कुछ रोज निकालते रहो। बच्चियों मंदिर के नाम पर चुटकी ही निकालती रहो तो जल्दी काम हो जायेगा।

नरकों में लाखों करोड़ों वर्ष तक रहना पड़ता है

महाराज जी ने 2 अक्टूबर 2020 प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि नरकों में लाखों, करोड़ों वर्ष रहना पड़ता है। चार युग सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग बीतने पर एक चौकड़ी होती है। 72 चौकड़ी बीतने पर एक मनवंतर, 14 मन्वंतर बीतने पर एक कल्प होता है। एक-एक कल्प तक एक-एक नरकों में कर्मों के अनुसार रहना पड़ता है। छोटे-बड़े मिलाकर 42 प्रकार के नरक है। अब कितना दिन उसमें रहना पड़ेगा। इसलिए सन्तों ने यह कोशिश किया और कोशिश हो रही है कि जीव फंसने न पायें, निकल जाएँ, एक-दूसरे जन्म में निकल जाए। बहुत लोग कहते हैं कि गुरु महाराज कैसे शरीर छोड़ कर के चले गए? उन्होंने तो कहा था मैं अपना काम करके ही जाऊंगा, चाहे 400 वर्ष मुझे यहाँ रहना पड़ जाए। तो ज्यों केले के पात के पात पात में पात, त्यों सन्तों के बात के बात बात में बात। 100 साल की उम्र से तो ज्यादा गुरु महाराज रहे और जाने से पहले घोषणा करके गए कि यह (पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज) नाम दान देंगे, पुराने लोगों की संभाल करेंगे और यह जब जाने लगेंगे तब जिसको यह समझेंगे कि यह अच्छा है और साधना करता है उसको बता देंगे। फिर इसी तरह से कोई आ जाएगा और वह बता देगा और यह चलेगा। और उसके बाद में जब कोई नहीं रह जाएगा तो कुछ दिन के लिए यह लुप्त हो जाएगा। लेकिन यह लुप्त होने वाला इसलिए नहीं है क्योंकि व्यथा न जाए देव ऋषि वाणी। देवताओं और सन्तों की बात गलत नहीं होती है। सन्त वचन पलटे नहीं, पलट जाए ब्रह्मांड। सन्त की बात गलत नहीं होती है। तो जब गुरु महाराज ने इस बात को कहा कि इस धरा पर ही सतयुग उतर आएगा तो कैसे नहीं आएगा सतयुग? गुरु महाराज ने कहा कि कलयुग अभी जा नहीं रहा है, कलयुग में ही सतयुग आएगा। कलयुग में ही सतयुग आने के प्रमाण मिलते हैं। लिंग पुराण में, 4 वेद 6 शास्त्र 18 पुराण हैं, इनमें भी मिलता है। कलयुग गया था सतयुग में राज करने। वही सतयुग अब कलयुग में आ रहा है। तो जब सतयुग आ जाएगा तो संभालने वाले रहेंगे ही रहेंगे। तो आप गुरु महाराज से प्रार्थना करो कि आप हमारे ऊपर दया करो। हमको कुछ नहीं चाहिए। जब आप हमको मिल गए, आपने हमारा हाथ पकड़ लिया तो हमको यह विश्वास हो गया कि आप हमको पार करोगे ही करोगे लेकिन दोबारा हमको फिर जन्मना-मरना न पड़े, मां के पेट में उल्टा लटकना न पड़े, मां के पेट की अग्नि में मुझे जलना न पड़े, इसके लिए दिल से ह्रदय से प्रार्थना गुरु महाराज से करो। ह्रदय की प्रार्थना झलक जाती है।

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