कलयुग का जोर चल रहा, ये नहीं चाहता कि लोग होश में आवें, क्लोरोफार्म के तरह से रहें मदहोश -सन्त उमाकान्त जी महाराज

सच्चे सन्त का सतसंग सुनकर अमल में लाने से क्लोरोफॉर्म कलयुग का नशा नहीं करता काम

अलवर (राजस्थान)
कलयुग के प्रभाव में आकर अपने असली पिता असली वतन और अपने मनुष्य शरीर पाने के असली उद्देश्य को भूलकर दुनिया की चीजों को पाने में ही अपना अमूल्य मनुष्य जीवन ख़तम कर देने वाले मनुष्य को बता समझा कर चेताने वाले, इस समय के महापुरुष, त्रिकालदर्शी, परम दयालु, दुःखहर्ता, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 18 दिसम्बर 2022 दोपहर अलवर (राजस्थान) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सन्देश में बताया कि इस समय पर कलयुग का जोर चल रहा है। कलयुग यह नहीं चाहता कि प्रेमियों को होश आवे क्योंकि कलयुग ने एक तरह से, जैसे क्लोरोफॉर्म जिसे सुंघा कर बेहोश कर के ऑपरेशन, काट-पीट देते हैं और पता नहीं चलता है, वैसे ही कलयुग के नशे में लोग मस्त हैं। भूल गए कि मनुष्य शरीर किस लिए मिला? प्रभु कौन है? हम कौन हैं? हमारा कौन है? अपना-पराया क्या है? धर्म-कर्म क्या है? इन चीजों को भूल करके बस पशु-पक्षियों की तरह से खाओ, बच्चा पैदा करो और दुनिया से चले जाओ, बस यही इतनी जानकारी लोगों को हो पा रही है। आदमी को कथा भागवत प्रवचन सुनते, मंदिरों तीर्थ स्थानों आश्रमों मठों पर जाते समय थोड़ा सा होश आता है कि भाई यह (दुनिया) सुख-शान्ति की जगह नहीं है। यहां हम सुख को खोज रहे हैं, उसी सुख में दु:ख पैदा होता चला जा रहा है। लेकिन सुनने, समझने के बाद जब वापस घर में आता है तो पहले तरह का वातावरण मिलता है और उसी में मस्त हो जाता है।

सतसंग के वचन सुनकर अमल करने पर आदमी मदहोशी से होश में आ जाता है

मनुष्य के लिए सतसंग बहुत जरूरी होता है। सतसंग ज्ञान बढ़ता, जानकारी देता है। सतसंग से मदहोश आदमी को होश आता है लेकिन सतसंग के वचनों को सुना, समझा और अमल किया जाए तब तो कलयुग क्लोरोफॉर्म का नशा काम नहीं करता है नहीं तो नशा छाया रहता है। यह कलयुग का असर है, वो खुजली पैदा करता रहता है।

प्रभु की अंश जीवात्मा मनुष्य शरीर के अंदर जेल की तरह से है कैद

जेल की कैद के समान आपकी परमात्मा की अंश जीवात्मा भी मनुष्य शरीर के अंदर बंद हो गई। न चाहते हुए भी जीवात्मा को आप निकाल नहीं सकते। आपके ध्यान, भजन में, सतसंगों में जाने में दिक्कतें आती रहती है। “यह अवसर आवत अति कठिनाई”। जिस समाज, परिवार में रहते हो वह एक तरह से खुजली है।

जेल में बंद अंधे का दृष्टांत

एक अंधा आदमी जेल में बंद हो गया। जीवात्मा में एक आंख है। वह जब बुरे कर्मों की वजह से बंद हो जाती है तो जीवात्मा भी अंधी हो जाती है, आगे नहीं बढ़ पाती। किसी ने कहा दिवार के किनारे-किनारे चलते हुए रास्ता खोज ले जाओ तो बाहर निकल जाओगे। अब वो दिवार के किनारे-किनारे खोजता हुआ जाए लेकिन जब दरवाजे के पास पहुंचे तो सर, बदन में खुजली हो गई तो खुजालने में (दिवार से हाथ हटाये, और) दरवाजा निकल जाए तो रास्ता उसको नहीं मिला तो कैद रह गया। ऐसे ही यह मृत्युलोक भी एक तरह से जेल ही है जिसमें आदमी फंसा रहता है, लौट-लौट कर चौरासी में आना पड़ता है, खुजली है, घर को छोड़ नहीं सकते हो, एक दूसरे के आश्रित है क्योंकि बंधन में आप हो-

पहला बंधन पड़ा देह क, दूसर तिरिया जान।
तीसर बंधन पुत्र विचारो, चौथा नाती मान।
नाती के कहूँ नाती होवे, ता बन्धन का कौन ठिकान।
धन-संपत्ति और हॉट हवेली, इस बंधन का क्या करूं बखान।
चौलड़ पचलड़ सतलड़ रसरी, बांध दिया तोहि बहु विधि तान।
मरे बिना तुम छूटौ नाही, जीते जी तुम धरौ न कान।।

आप बंधन में बंधे हुए हो। अब इससे निकल नहीं सकते हो। गृहस्थ धर्म का पालन करना, एक-दूसरे का लेना-देना अदा करना है। आपको यही नहीं मालूम होता है कि आप पिछले जन्म में कहां थे? कीड़ा-मकोड़ा, सांप, बिच्छू, गोजर, आदमी, जानवर थे कि जलचर थे कि नभचर यानी आकाश में उड़ने वाले पक्षी थे। आप समझो लेना-देना होता है। कोटि जन्म जब भटका खाया, तब यह नर तन तुमने दुर्लभ पाया।। करोड़ों जन्मों में भटकने के बाद फिर यह मनुष्य शरीर मिला है तो पिछले जन्मों का एक-दुसरे का लेना-देना भी अदा करना है। अगर लेना-देना न होता तो यह मनुष्य शरीर नहीं मिलता। तो शरीर के रहते-रहते सारा लेना-देना अदा करना है और शरीर को भी स्वस्थ रखना है।

सतसंग क्या सिखाता है

कि इसी (दुनिया) को अपना काम मत समझ लो, इसी में मत फंसे रहो। आप अपने मां के पेट में वादा करके आए थे कि प्रभु बाहर निकालो, इस तकलीफ कष्ट दर्द से बाहर निकल करके समरथ गुरु की तलाश करके सच्चा रास्ता ले करके हम दिन-रात भजन-पूजन करेंगे, अपनी आत्मा को आप तक पहुंचा देंगे। आप दया कृपा मेहरबानी करो। वो वादा भी आपको पूरा करना है।

जल्दी करो नहीं तो जीवात्मा फंस जाएगी

आपको जानकारी होते हुए भी अगर इसी में अगर फंसे रहोगे, लगे रहे तो वो वादा याद नहीं आएगा और शरीर छूटने पर यह समय (उम्र) निकल जाएगा, पूरा हो जाएगा। आत्मा का कल्याण इसी मनुष्य शरीर से हो सकता है और तब वह हो नहीं पाएगा। यह जीवात्मा प्रभु के पास पहुंच नहीं पाएगी क्योंकि रास्ता इसी मनुष्य शरीर के अंदर में ही है – “साधन धाम मोक्ष कर द्वारा” मोक्ष का दरवाजा इसी मनुष्य शरीर में ही है तो जीवात्मा फँस जाएगी। तो आपको अपनी आत्मा के लिए भी कुछ करना चाहिए।

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