शंकर जी ने कभी भी भांग गांजा का इस्तेमाल नहीं किया, उनका नाम बदनाम मत करो – बाबा उमाकान्त जी महाराज

कृष्ण की 16000 रानियां नहीं बल्कि गोपिकाएं उनकी शिष्या, फालोवर्स थी

उज्जैन (म.प्र.)
स्वार्थ में और कालान्तर में समाज में फैलाई जा चुकी और फ़ैल चुकी भ्रांतियों को मिटाने वाले, गहरे ज्ञान की बात बताने समझाने वाले, लोक और परलोक दोनों बनाने वाले, इस समय जीवों के उद्धार की शक्ति जिनको मिली हुई है, जिनके चरणों में ही मुक्ति-मोक्ष का निवास है, ऐसे सर्व व्यापक, सर्व शक्तिमान, इस समय के युगपुरुष, त्रिकालदर्शी, दयालु, दुःखहर्ता, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 3 अगस्त 2020 प्रातः उज्जैन आश्रम में रक्षाबंधन कार्यक्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सन्देश में बताया कि कृष्ण ने द्रौपदी को समझाते हुए कहा कि तेरे भाव अगर अन्य गोपिकाओं की तरह होते, जैसे जब उनमें तड़प जगाती थी, जब कृष्ण को याद करती थी तो अंतर में सबको दर्शन होता था। कहा कि कृष्ण के 16000 रानियां दासियां थी – वो नहीं थी। 16000 गोपीकायें उनकी प्रिय, शिष्या, फोलोवर्स थी। उनको कृष्ण ने सुरत योग की साधना, दिव्य दृष्टि खुलने का रास्ता बता रखा था। उसके जरिए वो देखती थी तो उनको पति परमेश्वर और सब वही दिखाई पड़ते थे क्योंकि कृष्ण की जीवात्मा भारी थी। पुरुष ताकतवर होता है और स्त्री कमजोर होती है। तो वो अपने को कमजोर और कृष्ण की आत्मा को ताकतवर मानती थी। तो कोई ताकतवर मिलता है और वह मदद करता है तो बहुत से लोग उसको तरह-तरह से मानने लगते हैं और अपनी भाषा में तरह-तरह से पिताजी, पूज्य आदि कहने लग जाते हैं। लेकिन अब अर्थ का अनर्थ करने वाले यह सब (पत्नियां, रानियाँ वाली बात) कहने लग गए। कृष्ण ने द्रौपदी से कहा तेरे वह भाव नहीं जगे। भाव से ही भक्ति बढ़ती है। भाव जब ऐसा बना लेता है प्रेमी तो उसका काम बन जाता है, लोक और परलोक बन जाता है।

शंकर जी ने कभी भी गांजा भांग का इस्तेमाल नहीं किया

लेकिन अब आजकल के मठ के मठाधीश, आश्रम के महंत और बड़ी-बड़ी संस्थाएं चलाने वाले, शंकर जी के भक्त, मंदिर के पुजारी, बम बम बम बोल करके गांजा की चिलम खींचते हैं, भांग का गोला खाते हैं और कहते हैं शंकर जी भी नशा करते थे। नशा तो उनको रहता था लेकिन इन चीजों, जड़ी-बूटियों का नशा नहीं बल्कि देव रूप में अपने पिता जिनको ईश्वर, निरंजन भगवान कहा गया, उनकी याद में हमेशा मस्त रहते थे और अब भी मस्त रहते हैं।

काम करने के लिए शक्ति दी जाती है

महाराज जी ने 29 मार्च 2021 प्रात उज्जैन आश्रम में बताया कि ज्यादा मशहूर नाम त्रेता में आये राम और द्वापर में आये कृष्ण का है लेकिन मृत्यु के समय इन दोनों की शक्ति खींच ली गई थी। शक्ति दी जाती है काम करने के लिए। कभी-कभी देखो बड़े उत्साह में कार्यकर्ता रहते हैं, दौड़-दौड़ कर काम करते हैं और कभी वही सुस्त पड़ जाते हैं, काम करने की इच्छा नहीं होती है तो शक्ति काम करती है। अब यह शक्ति, दया लेने के लिए दया के घाट पर जो बैठ जाता है उनको मिल जाती है। तो काम करने के लिए शक्ति सबको मिलती है, दी जाती है लेकिन जब शक्ति देने वाले को उनसे काम नहीं लेना होता है तो वह शक्ति खींच लेता है। देखो महाभारत में अर्जुन की बड़ी भूमिका रही, वीर थे लेकिन जब महाभारत खत्म हो गया तो उनकी शक्ति खींच ली गई। कहा है भीलन लूटी गोपिका वही अर्जुन वही बाण, पुरुष बली नहीं होत है समय होत बलवान वही वीर जिनको देखते ही लोग थर्राते, काँप जाते थे उनके रहते भीलों ने गोपीकाओं को लूट लिया, यह कथा मिलती है। तो कृष्ण को मालूम तो हो गया था कि मैं जिस काम के लिए आया हूं, वह काम मेरा पूरा हो गया है। लेकिन समय का उनको अंदाजा नहीं था कि हम जंगल जा रहे हैं और वहां पर हमारा शरीर छूट जाएगा। क्योंकि शरीर जब छोड़ने को होता है तब शक्ति खींच ली जाती है। शक्ति जब तक रहती है तब तक वह शक्ति काम करती है। गुरु, सन्त रुपी परमात्मा सिर पर सवार रहते हैं। तो कहा गया गुरु राजी तो करता राजी, काल कर्म की चले न बाजी जब गुरु खुश होकर सर पर सवार रहते हैं तो काल कर्म की कोई बाजी नहीं चलती है। लेकिन जब गुरु सिर से उतर जाते हैं ताको काल घसीटीये, बचा सके न कोई। फिर काल इस शरीर के ऊपर उसका दांव लगाता है तो काल के विधान को मेटा नहीं जाता है और काम के लिए भेजा जाता हैं। काम जब पूरा हो जाता है तब उन पर ध्यान नहीं देते हैं। दूसरों को वह चार्ज दे देते हैं क्योंकि हर कोई हर काम को नहीं कर सकता है। तो शक्ति खींच ली जाती है। जो उनको हमेशा मदद करती, बचाती थी, मौत के समय में वह शक्ति खींच ली गई थी। जंगल गए, बैठे हुए थे। पैर में पदम का निशान था। बहेलिया शिकार खेलने के लिए गया। देखा जैसे मृगा की आंख चमक रही है। तीर छोड़ा कृष्ण के पैर में लगा और कराह मुंह से निकला। मौत के समय कुछ न कुछ तकलीफ सबको होती है। सुरत तो खिंच जाती है, सन्त अपनी जीवात्मा को निकाल लेते हैं लेकिन जब यह प्राण (हवा) निकलती है तो जैसे टायर फटता है तो आवाज होती है, ऐसे ही झटका सबको लगता है। चाहे जो भी मनुष्य शरीर में आवे, विधान नियम ही ऐसा है। इसलिए सन्तों से काल भगवान प्रार्थना करते हैं महाराज आप (मृत्युलोक) मत जाइए, आपको तकलीफ होगी। मेरे बनाए हुए शरीर में रहना पड़ेगा, नियम का पालन करना पड़ेगा लेकिन उनको आदेश सतपुरुष से होता है कि जीवों को समझा करके, उनको अपने घर की याद करा करके, रास्ता का बता करके लाओ। बहुत दिन हो गया बिछड़े हुए, मेरे ही अंश, जीव तड़प रहे, मुझको याद कर रहे हैं, अब जाओ आप। राम को भी नहीं पता था कि मैं लक्ष्मण के पीछे भग करके जा रहा हूं और यह सरयू नदी में कूदेंगे, मैं भी कूदूंगा, डूब जाऊंगा, वापस फिर नहीं निकलूंगा। जहां गुप्तार घाट इस समय है, कहते हैं भगवान गुप्त हुए थे। वहां जाते समय उनको ज्ञान नहीं था क्योंकि मानव शरीर में आ गए थे, शक्ति खींच ली गई थी तो शक्ति ही काम करती है। साधना में भी जीवात्मा की शक्ति खींच कर तीसरे तिल में लायी जाती है।

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