शिव जी के तांडव से बचने हेतु उनको खुश करना आवश्यक – पूज्य सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज

शंकर जी भांग धतूरा नहीं, भक्ति और प्रेम के नशे में रहते हैं

देश-विदेश से भारी संख्या मे आए भक्त हुए सतसंग की गंगा में सराबोर

प्रयागराज (उ.प्र)
प्रयागराज 17 फरवरी। स्थानीय परेड ग्राउन्ड मे त्रिदिवसीय महाशिवरात्रि सतसंग के दूसरे दिन पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि शिवजी संहारकर्ता भी हैं, औघड़ दानी भी हैं, खुश होने पर भरपूर देते हैं लेकिन क्या देते हैं? दुनिया की चीजों को और आदमी उसी में फंस जाता है क्योंकि उनसे वो यही धन, पुत्र, परिवार मे बढ़ोतरी माँगता है। इनके नियम को कोई तोड़े तो उसका विनाश भी कर देते हैं इसलिए शिवजी को खुश करते रहना पड़ता है। गुरु महाराज भी इन देवताओं को खुश करते रहे हैं। सन 1977 में बाबा जयगुरुदेव जी ने अयोध्या की रेती में यज्ञ कर समय पर जाड़ा गर्मी बरसात देने वाले देवताओं को खुश किया। उस समय भूख से मौतों की खबरें आती रहती थी। इतना चावल, गन्ना पैदा हुआ कि तब से आज तक कमी नहीं पड़ी। उन्होंने कहा था कि शिवजी को तो लोग खिलाते ही नहीं हैं। वेद मंत्र के द्वारा जब देवताओं को बुला कर खिलाते हैं तब उनको मिलता है। ऐसे शिवाय नम:, पूरब नम:, पश्चिम नम: बोलने, स्वाहा करने से देवता खुश नहीं होते। उनका खुराक क्या है? उनका भोजन अलग-अलग है। ये अलग-अलग योनियां, शरीर है। किसी का भोजन सुगंधी है, किसी का दृष्टि से, किसी का आवाज शब्द से पेट भर जाता है। यूट्यूब पर बहुत सारे सतसंग हैं, सुनिएगा। तो शिव को खुश करना पड़ता है। यहाँ त्रिवेणी संगम नदियों में स्नान करने से शारीरिक लाभ और अंतर की त्रिवेणी संगम में स्नान करने से मुक्ति-मोक्ष का दरवाजा खुल जाता है। तो यहाँ आना पड़ा, शिवरात्रि पर शिवजी को खुश करने के लिए यहाँ आना पड़ा, इतने साधकों को बुलाना पड़ा क्योंकि जब सब के सब जनहित की बात सोचेंगे, अपनी बात भूल कर दूसरे की रक्षा की बात करेंगे, प्रार्थना करेंगे, इतने साधक बैठ कर साधना करेंगे तो शिवजी तो दया करेंगे ही करेंगे। इतने लोग आए, ये मनाएंगे शिवजी को कि कहीं तांडव न शुरू कर दें। तांडव करते हैं तो धरती हिलती है, भूकंप आता है। तुर्की आदि देशों मे आये भूकंप की हालत देख लो, हाय-तौबा मचा हुआ है।




दिव्य चक्षु, थर्ड आई, शिव नेत्र खुलने पर शिव का लोक सीधे दिखाई पड़ता है। जिनका भजन बनने लगता है, आवाज सुनाई देने लगती हैं उनका शरीर चाहे दुबला-पतला दिखे लेकिन उनकी कार्य क्षमता यानि वर्किंग कपैसिटी बहुत हो जाती है। आप लोग दक्षिणा में इसी त्रिवेणी संगम में अपनी बुराईयों को दफना दो। अंडा, मांस, मछली मत खाना, शराब और उसके जैसा तेज कोई भी नशा मत करना।


जयगुरुदेव नाम ध्वनि घर-घर में करो और तकलीफों में राहत पाओ
आपके परिवार के जो सदस्य नहीं आ पाए हैं, उनकी तकलीफ भी दूर करना आपकी जिम्मेदारी है। सब लोग अपने-अपने घरों में सुबह-शाम जयगुरुदेव नाम ध्वनि करो। प्रेमी बताते हैं कि परिवार के मांसाहारी लोग विरोध करते थे लेकिन जब शुरू किया, ध्वनि कान में गई तो बदल गए, सुधर गए, गलत रास्ते पर जाते-जाते रुक गए।
शंकर जी भांग धतूरा नहीं, भक्ति और प्रेम के नशे में रहते हैं
महाराज जी ने बताया कि शंकर जी गांजा भांग धतूरे का नशा नहीं करते हैं। वह तो दूसरे नशे में, भक्ति प्रेम के नशे में रहते हैं। और उनको जो संहार का काम मिला हुआ है, उसे वो करते ही करते हैं। उनको तो करना ही करना है। कर्मों का विधान जब से बना तब से कर्मों की सजा मिलनी ही मिलनी है। सबको मिलती है। यह जरूर है कि जो उनकी पावर में होता है, उसमें थोड़ी रियायत कर देते हैं। जैसे किसी सिपाही को हुकुम हो गया कि जाओ मुजरिम को पकड़कर के ले आओ। खुश अगर होगा तो मारपीट नहीं करेगा, गाली गुप्ता नहीं देगा। लेकिन पकड़कर के मुजरिम को ले ही जाएगा थाने पर। जज के सामने पेश करते समय तकलीफ, सजा नहीं देगा, प्रेम से ले जाएगा। तो वह उतना ही कर सकता है। सजा से मुक्ति नहीं दिला सकता है। सजा को कौन माफ करता है? सजा को जज ही माफ करता है। ऐसे ही वक़्त के सन्त के पास ही कर्मों की सजा से माफी मिलने की युक्ति होती है।

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