ईटभट्ठो मे कोयले की जगह खुलेआम हो रहा तोरिया भूसे का प्रयोग

यू पी फाइट टाइम से संवाददाता निहाल शुक्ला

कौशांबी||जिले के ईंट भट्ठों पर कोयले की महंगाई का विकल्प तलाश कर ग्राहकों की आंख में धूल झोंकते हुए भट़ठों में कोयले की जगह तोरिया का भूसा झोंका जा रहा है। तोरिया के भूसे की मांग इतनी जबरदस्त है कि इस भूसे को मध्यप्रदेश से आयात किया जा रहा है। उपभोक्ताओं से कोयले से पकी ईट का मूल्य वसूला जा रहा है जिससे न सिर्फ पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है बल्कि इससे तैयार ईट की क्वालिटी भी घटिया होती है।

तोरिया से सरसों निकाल कर भूसे को बेकार समझ कर किसान मुफ्त में ट्रैक्टरों में भरवा कर खेत से बाहर निकाल देते हैं। वही भूसा इतना काम का है कि भट्ठे वाले उसे कीमती कोयला के स्थान पर ईधन के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। जब ईट पक कर तैयार हो जाती है तो ईट का मूल्य कोयले से पकी ईट के बराबर वसूल कर उपभोक्ताओं की जेब पर डाका डालने का काम कर रहे हैं। देखने में ईट लाल रंग की अवश्य दिखाई पड़ती है। लेकिन वास्तव में वह खराब श्रेणी की ईट होती है। सरकार ने पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से ईट भट्ठा के मानक तय करते हुए प्रदूषण कम करने के उद्देश्य से स्थाई चिमनी मानक के अनुसार निर्मित कराकर ही ईट पकाने की अनुमति प्रदान की है। लेकिन तोरिया के भूसे के प्रयोग से पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित होता ही है ईट की क्वालिटी भी खराब किस्म होती है। तोरिया का भूसा लोकल तथा आयातित दो प्रकार का होता है जिसमें आयातित यानी मध्यप्रदेश से मंगाया गया भूसा उत्तम माना जा रहा है। अपना नाम न छापने की शर्त पर एक भट्ठा मालिक ने बताया कि मध्य प्रदेश के भूसे में लकड़ी की मात्रा अधिक होती है इस लिए यह अधिक उपयोगी माना जाता है।सदर तहसील के दो दर्जन से अधिक ईट भटठो मे तोरिया के भूसे से खुलेआम ईट पकाया जा रहा है|

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