बुढापे में कुछ कर पाओगे? अपने आत्म कल्याण के लिए अभी कुछ कर लो

ये जगत सपना है और सपना किसी का अपना नहीं होता है

आप जिनको वक़्त के गुरु मिले, नामदान मिला, इसकी करो कदर

उज्जैन (म.प्र.)
साधना में कम मेहनत में ज्यादा परिणाम प्राप्त करने के टिप्स बताने वाले, इस समय धरती पर नामदान देने के एकमात्र अधिकारी, गफलत में जवानी व्यर्थ न करने के लिए चेताने वाले, सभी प्रकार से समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने होली कार्यक्रम में 6 मार्च 2023 प्रात: उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सामूहिक ध्यान भजन करने से साधना में ज्यादा फायदा मिलता है। जैसे आग की लपट बीच में होती है लेकिन तपिश दूर तक महसूस होती है। जिन साधकों की साधना में चढ़ाई होती है, उनमें दया की धार उतरती है तो साथ बैठने वालों को भी लाभ मिलता है। इसलिए नियम बनाया गया कि एक साथ बैठ कर साधना करो। सामूहिक साधना से धरती भी जग जाती है। ये शरीर सुचालक है। दया की धार इसी शरीर से होकर धरती में जाती है।जैसे जिस स्थान पर बैठ कर विक्रमादित्य न्याय करता था, बाद में उसी स्थान पर बैठ कर पशु चराने वाला लड़का बैठकर सही न्याय कर दिया कर दिया करता था। उस स्थान से दूर जाने पर वैसी बुद्धि नहीं चलती थी। कुछ समय तक भूमि पर असर रहता है। यही कारण है कि जब सन्त चले जाते हैं, उस जगह को जगाये रखने वाले नहीं रहते तब उस धरती का महत्त्व ख़त्म हो जाता है। शुरू में तो लोग मत्था पटकते हैं लेकिन धीरे-धीरे असर ख़त्म होने पर लोग आना बंद कर देते हैं। तब लोगों को बुलाने के लिए तमाम बहाने, रामलीला, रासलीला आदि लोग करने लगते हैं।

आप जिनको वक़्त के गुरु मिले, नामदान मिला, इसकी करो कदर

आपको लम्बा समय चौरासी में काटने के बाद ये अनमोल मनुष्य शरीर मिला, वक़्त के पूरे समरथ सन्त सतगुरु भी मिले, उनसे नामदान भी मिला, लेकिन गुरु के दिए नाम को नहीं भजा तो अपार दुःख आपको जन्मते मरते फिर सहना पड़ेगा। मरते समय बड़े कष्ट में तुतलाती आवाज से पुकारता है लेकिन धन, पुत्र परिवार कोई मददगार नहीं हो पाता। इस बार मौका मिला है, पग में अटके आये यानी केवल एक कदम आगे बाधाओं और निकल चलो इस दुःख के संसार से। घट में ये ध्यान भजन करना, कराना है। यहां से संकल्प बना कर जाओ। मनुष्य देखा-देखी में बहुत कुछ करता है, प्रयास करता है, अनुभव के साथ करोगे तो फायदा होगा नहीं तो नहीं होगा। फायदा मिलने पर मनोबल बढ़ जाता है।

बुढापे में कुछ कर पाओगे?

बुढापे में कुछ हो सकता है? कुछ नहीं। जवानी तो दुनिया कमाने में निकाल दी जो अंत समय कुछ काम नहीं आती और अब बुढ़ापे में कर कुछ नहीं सकते लेकिन मन और ज्यादा जवान हो जाता है। काम वासना ज्यादा तेज हो जाती है, अपने मकान गाड़ी सामान को देख-देख कर अहंकार ज्यादा जाता है, लोभ बढ़ जाता है, मोह तो आखरी वक़्त तक रहता है। बुढापे में मालिक को याद करना ही फायदेमंद हो जाता है, यदि गुरु की दया मेहर की नजर हो गयी तो उसी से काम हो जाता है।

ये जगत सपना है और सपना किसी का अपना नहीं होता है

ये दुनिया सार नहीं, थोथा है, स्वप्नवत है। शिव ने उमा से कहा सत हरी भजन, जगत सब सपना। थोड़े समय के लिए दुनिया को भूलो। सपना किसी का भी अपना नहीं होता। थोथा उडाओ, सार को ग्रहण करो। सुमिरन ध्यान भजन ही सार है। सन्तों ने बहुत शोध कर कलयुग में जीवात्मा के कल्याण के लिए ये अति सरल उपाय निकाला जिसे कभी भी कोई भी कैसे भी कहीं भी, बिना किसी आचरण (औपचारिकताओं जैसे नहाना, विशेष कपड़े पहनना, बाल कटाना आदि) के कर सकता है। काल भगवान ने कर्मों का विधान ऐसे बनाया जैसे जहर का असर। आदत बिगड़ने पर मन बुरा कर्म किये मानता ही नहीं है। निराश मत होओ, देखो कि कर्मों का चक्कर है, (साधना में) लगे रहो।

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