जयगुरुदेव के अनुयाइयों ने मुक्ति दिवस मनाया

जयगुरुदेव नाम का अलख जगाया गया कौशाम्बी मुख्यालय मे

आर पी यादव ब्यूरो चीफ
यू पी फाइट टाइम्स

कौशाम्बी:-23 मार्च, जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था के लिये परम पानव एवं खुशी का दिन है। इसी दिन विश्व विख्यात् परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी महाराज आपातकाल खत्म होने के बाद दिल्ली की तिहाड़ जेल से 1977 को मुक्त हुये थे। तब से प्रतिवर्ष 23 मार्च मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है।

अपने सम्बोधन में कहा सन्त महापुरुष जीवों के कल्याण के लिये अवतरित होते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से दुनियां वालों ने उनको प्रताड़ित और विरोध किया। 25 जून सन् 1975 को जब आपातकाल लागू किया गया तो बहुत से निरपराध साधु, महात्माओं, राजनेताओं को बन्दी बनाया गया था। युग महापुरुष बाबा जयगुरुदेव जी महाराज को 29 जून 1975 को बन्दी बनाकर आगरा केन्द्रीय कारागार (जो कुछ समय में टूट गई थी), बरेली, बंगलोरू तथा तिहाड़ जेलों में रखा गया था,

बेड़िया पहनाई गई, तनहाई दी गई। बाबा जी के संकल्प और पूर्व की घोषणा के अनुसार सत्ता परिवर्तन होने पर जेल से 23 मार्च को मुक्त हुये। 9 दिसम्बर 1976 को बाबा जी के बीसों हजार अनुयाई जनता के मौलिक अधिकार बहाल किये जांय, बन्दी नेता छोड़े जाँय, आपातकाल हटाया जाये, चुनाव कराये जांय, जबरन नसबन्दी गर्भपात बन्द किया जाय आदि मांगों के साथ सत्याग्रह करके जेल गये थे। इस मुक्ति दिवस के पीछे लौकिक-पारलौकिक दोनों लक्ष्य जुड़े हुये हैं। साधना करके गुरु की दया से आत्मा को जीवन-मरण के बन्धन से मुक्त करा लें। यह भी लक्ष्य जुड़ा है। सभी को मुक्ति दिवस की हार्दिक बधाईयाँ व शुभकामनायें है। अपने सम्बोधन में संस्थाध्यक्ष ने ‘‘मिली नर देह यह तुमको, बनाओ काज कुछ अपना। पचो मत आय यहि जग में जानियो रैन का सुपना।’’ को उद्धृत करते हुये कहा कि इस अनमोल मानव तन को पाकर अपना आत्म कल्याण करा लीजिये। पैदा होने से पहले सबने ईश्वर से प्रार्थना की थी कि अबकी बार हमको मानव तन दे दीजिये तो हम आपकी भक्ति करेंगे, भजन करेंगे। लेकिन बाहर आने पर वादा भूल गये और इस मानव शरीर से तरह-तरह के खोटे-बुरे कर्म कर डाले। तो आप कर्म करने में स्वतंत्र हैं लेकिन फल भोगने में परतन्त्र हैं। यमदूत जीवात्मा को निकालकर धर्मराज की कचहरी में पेश कर देंगे तो जरा सी देर में हिसाब हो जायेगा। सजा सुना दी जायेगी कि ले जावो इनको नर्कों में कठोर यातनायें दो। सहजोबाई ने इस कठोर यातना के दृश्य का वर्णन करते हुये कहा कि ‘‘लौह के खम्भ तपत के माहीं, जहां जीव को ले चिपटाहीं’’। वहां तो लोहे जैसे खम्भे तप कर लाल हो रहे हैं उसमें खोटे कर्म करने वाले जीवों को चिपकाया जाता है उनके रोने-चिल्लाने की आवाज लाखों मील तक जाती हैं लेकिन कोई बचाने वाला नहीं। महात्मा जब साधना करके ऊपर के लोकों में जाते हैं तो इन दुखदाई दृश्यों को देखते हैं तो द्रवित होकर जीवों को बचाने का उपदेश करते हैं।


उन्होंने आगे कहा चरित्र मानव धर्म की सबसे बड़ी पूंजी है। भगवान के भजन के लिये सबसे पहले चरित्रवान बनें, मानवतावादी बनें, एक-दूसरे की निःस्वार्थ भाव से सेवा करें। हिंसा, अपराध से दूर रहकर शाकाहारी रहें, नशों का त्याग करें और आंखों में बहन, बेटी, मां की पहचान करें ।आध्यात्मिक-वैचारिक जनजागरण यात्रा के साथ यही उद्देश्य लेकर निकले हैं कि लोग भजन भक्ति के द्वारा मानव जीवन को सफल बनायें। आने वाली मुसीबतों से खुद बचे और दूसरों को भी जागृत करते रहें। इससे आपका लोक-परलोक दोनों बनेगा।

हमारे गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ‘जयगुरुदेव’ नाम को जगा कर और सिद्ध करके गये हैं।इस अवसर पर कशी प्रसाद विश्वकर्मा तहसील अध्यक्ष सिराथू कुबेर सिंह,ब्रह्म दीन विजय यादव रघुराज यादव रमेश प्रसाद सुलेखा देवी सुनीता देवी,सोनालिया भारतीय, घनश्याम सिंह, गौकरन महन्त लाल फूलचन्द्र लाल जी यादव बंशी लाल डॉक्टर गुरु प्रसाद राम बाबू आकाश कुमार सोनू लवकुश क्षेत्र हजारो जयगुरुदेव सत्संगी मौजूद रहे।

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