पंचिन्द्रियों के वशीभूत मनुष्य की क्या दशा होगी: विभाश्री माताजी

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….झाँसी न्यूज़

●जिस बिना नही जिनराज सीझें,तू रुल्यो जग कीच में…..
●उत्तम संयम पालें ज्ञाता,नरभव सफल करें ले साता
● संयमित,नियमित, व्यवस्थित होना आवश्यक हैं: पूज्य गणिनी आर्यिका
●पंचिन्द्रियों के वशीभूत मनुष्य की क्या दशा होगी: विभाश्री माताजी

झाँसी: गांधी रोड स्थित श्री १००८ दिगम्बर जैन पंचायती बड़ा मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए पूज्य गणिनी गुरुमां विभाश्री माताजी ने कहा कि आज पर्युषण पर्व का छठवां दिन उत्तम संयम धर्म की आराधना करने का दिन हैं
दस धर्मों में सर्वप्रथम हमारे लौकिक व पारमार्थिक लक्ष्यों व कार्यों का बिगाड़ करने वाले चार बाधक कषाय क्रोध,मान, माया,लोभ को त्याग कर क्षमा,मार्दव,आर्जव,शौच को धारण कर उत्तम सत्य को जानने की बात कही गई।
जीवन पानी की तरह निरंतर बहता रहता हैं।
जिस तरह दो तटों के बीच मे बहता पानी समुद्र व सागर कहलाता हैं लेकिन अगर तट की मर्यादा न हो तो वह नदी लक्ष्य से भटकते हुए विभीषिका बन जाया करती है
लता बड़ी कोमल होती है कुशल माली उस लता की किसी डंडी के सहारे बांध देता है जिससे वह लाता ऊपर तक पहुंच जाया करती हैं,फल फूल लगने लगते है।उसी तरह हमारा मन कोमल लता एवं पानी की तरह भटकता हैं हमें लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तटों की आवश्यकता हैं,बंधन की आवश्यकता हैं।ये बंधन हमारे कार्य का बिगाड़ नही बल्कि लक्ष्य की प्राप्ति में सिद्धि हुआ करता हैं।बिना लगाम का घोड़ा सवारी को गड्ढे में पटक देता है,हाथी पर अगर अंकुश न लगाया जाए तो वह चिंघाड़ता हुआ सब कुछ उजाड़ देगा,बिना ब्रेक की गाड़ी में बैठना कोई पसंद नही करता हैं।पतन व दुर्घटना से बचने के लिए संयम बहुत आवश्यक हैं।
आज का व्यक्ति भौतिक महत्वकांक्षाओं की दौड़ में इस कारण भाग रहा है और अगर भाग्य वश पुरुषार्थ की सिद्धि नही होती तो आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने को भी तैयार हो जाता हैं। मरने के लिए तैयार है,मारने के लिए तैयार हैं लेकिन आज का व्यक्ति संयमित होने के लिए तैयार नहीँ हैं।भगवान महावीर कहते हैं संयम तप और त्याग से ज्यादा आ आवश्यक हैं। स्पर्शन इन्द्रिय के वशीभूत हुआ हाथी भी हथिनी के चक्कर मे बंधन में बंध जाता हैं,रसना इन्द्रिय के वशीभूत हुई मछली थोड़े से आटे के लोभ में अपने प्राणों को गंवा देती हैं,घ्राण इन्द्रिय के वशीभूत हुआ भौंरा कमल में पड़कर अपने प्राणों का घात कर लेता हैं,चक्षु इन्द्रिय के वशीभूत हुआ पतंगा लाइट में टकरा-टकरा कर नीचे गिरकर मृत्यु को प्राप्त होता है,कर्ण इन्द्रिय के वशीभूत हुआ हिरण और सर्प बंधन और मृत्यु को प्राप्त होते हैं। माताजी ने आगे कहा कि जबएक एक इंद्रियों के वशीभूत हुआ प्राणी बंधन व मृत्यु को प्राप्त हो रहें है तब यह मनुष्य तो पांचों इंद्रियों का स्वामी हैं तो उसकी क्या दशा होगी? इस पर विचार करना हैं।कहते हैं स्त्रियों और इंद्रियों की मांग कम नही होती,अगर एक बार मांग भर दी तो जिंदगी भर पूरा करना पड़ता हैं।संयम को आचार्यों ने दो भागों में बांटा है एक श्रावक के अणुव्रत और दूसरी ओर मुनिराजों के महाव्रत,जो इन व्रतों का निर्दोष पालन करता हैं वह नियम से स्वर्ग वैमानिक देवो में उच्चकोटि का देव बनता हैं।अगर हम स्वर्ग और मोक्ष के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं तो संयम धारण करना पड़ेगा।ज्ञान सम्मान दिलाता है और संयम पूजा कराता हैं।ज्ञान सम्मान का कारण तो बन सकता है लेकिन संयम पूज्य बनाता हैं,तीर्थंकर जैसे पुण्यशाली जीव को भी नग्न दिगम्बर मुद्रा धारण करके ही निर्वाण की सिद्धि प्राप्त होती है,मोक्ष जब भी होगा निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुद्रा से ही होगा,जिस संयम को धारण करने के लिए स्वर्गों के देवता भी तरसते है,ऐसे संयम को कोई भी जीव धारण कर मोक्ष मार्ग की सिद्धि कर सकता हैं,साधु बनने का सौभाग्य हर किसी का नही होता,जब संसार क्षणभंगुर लगता है और संसार का वैभव नश्वर लगता है तो साधक साधना के पथ पर संयम के पथ पर चला जाता हैं।जहां वैराग्य व विरक्ति आती है वहाँ जीव किसी के रुके रुकता नही हैं,दीक्षा के लिए दरिद्रता की नही,शरीर बल की नही बल्कि आत्मिक बल की आवश्यकता हैं।ज्ञान बल और वैराग्य बल ये दो शक्तियां मार्ग में आगे बढ़ाती हैं।ज्ञान और वैराग्य की शक्ति संयम मार्ग से विचलित नही होने देती।
सप्त व्यसनों का त्याग एवं अष्ट मूलगुणो का पालन प्रत्येक श्रावक के जीवन मे होना चाहिए।छोटे छोटे नियम संयम एक दिन बहुत बड़े हो जातें हैं।इस अवसर पर सौरभ जैन सर्वज्ञ ने बताया कि धूप दशमी के पर्व पर जैन समाज के श्रद्धालुओं द्वारा शहर के समस्त मंदिरों की धर्मध्वजा के साथ वंदना करते हुए भगवान के चरणों मे धूप खेयीं गयी।इस अवसर पर आज पूज्य माताजी के मुखारविंद से उच्चारित सुखी,समृद्ध जीवन के लिए शांतिमंत्रो द्वारा शान्तिधारा करने का सौभाग्य सौरभ जैन ‘सर्वज्ञ’,सिंघई संजय जैन,सुकमाल जैन ‘बड़ागांव’,महेंद्र जैन,डॉ राजीव जैन,मनोज सिंघई,आशीष जैन ‘माची’,देवेन्द्र जैन मगरपुर,अनूप जैन ‘सनी गुदरी’,अविनाश मड़वैया, सौरभ,अंशुल जैन कामरेड को प्राप्त हुआ। पाद प्रक्षालन का सौभाग्य संघस्थ समस्त ब्रम्हचारिणी दीदियों एवं शास्त्र भेंट का सौभाग्य श्रीमति रश्मि जैन,गौतम जैन,व पिंकी जैन को प्राप्त हुआ।धर्मसभा के पूर्व गणाचार्य श्री विरागसागरजी महामुनिराज के चित्र अनावरण एवं चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन करने का सौभाग्य दिनेश जैन डीके,अमित जैन,श्रीमती राजेश्वरी, वंदना,प्रभा,अनीता, कल्पना कामरेड, सिद्धि जैन,विशाखा जैन को प्राप्त हुआ। तत्पश्चात करगुंवा जी क्षेत्र के मंत्री संजय सिंघई के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनकी समजसेवाओं व देव-शास्त्र-गुरुओं-गुरुओं के प्रति अनन्य भक्ति हेतू उनको सम्मानित किया गया।इस अवसर पर पंचायत अध्यक्ष अजित जैन,वरिष्ठ समाजसेवी,रमेशचंद्र अछरौनी,उत्तरांचल तीर्थक्षेत्र कमेटी के महामंत्री प्रवीण जैन, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुभाष जैन,कनिष्ठ उपाध्यक्ष वरुण जैन,महामंत्री कमल जैन,कोषाध्यक्ष जितेंद्र चौधरी, ऑडिटर राजकुमार भण्डारी,मनोज सिंघई,आलोक जैन विश्वपरिवार,विनय जैन,रविन्द्र जैन कोरियर,अलंकार जैन, अनिल जैनको,अंकित सर्राफ,सुयोग भण्डारी,अमन जैन,दीपांक जैन,अनूप जैन पत्रकार,यश सिंघई,शुभम जैन सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहें।कार्यक्रम का संचालन सौरभ जैन सर्वज्ञ व आभार गौरव जैन नीम ने किया।

रिपोर्ट शेख अंसार हुसैन

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