सतसंगी, सेवादारों को ये पता नहीं चलता की उनमें क्या शक्ति है या गुरु कब दया ताकत दे करके आगे बढ़ा देंगे

सेवा का अवसर मिला है, चूको मत

ज्ञान आखिरी वक्त तक लिया जा सकता है

रेवाड़ी (हरियाणा )
निजधामवासी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 29 नवम्बर 2022 बावल आश्रम, रेवाड़ी में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि शरीर का, उम्र का ध्यान रखते हुए दोनों बाह्य और आंतरिक भक्ति में लगना चाहिए। ज्ञान आखरी वक्त तक लिया जाता है, सीखा आखरी वक्त तक जाता है।

यह आदमी का भूल-भ्रम है कि अब हमारी उम्र हो गई। अब तो हमारा जैसा निभ रहा था वैसे ही निभेगा, ऐसे ही हम चले जाएंगे। यह तो देव देव आलसी पुकारा। इच्छा जागने पर लोग तरक्की कर जाते हैं। जैसे भोजन की, कमाने की, दुनिया की चीजों की इच्छा जगती है ऐसे ही इच्छा परमार्थ की भी रखनी चाहिए। बाह्य सेवा सीख कर उसे करने की भी इच्छा रखनी चाहिए। कुछ ऐसे करोड़पति, अरबपति हैं, अपना बिस्तर लगाना, थाली बर्तन धोना भी नहीं आता है क्योंकि नौकर लगे हैं लेकिन इच्छा जग गई तो सीख कर बढ़िया से करते हैं। तो सेवा की इच्छा रखनी चाहिए।

आत्म धन के सामने विद्वान धनी मानी फीके पड़ जाते हैं

संगत में इज्जत लोग उसी की करते हैं जो सेवा करता है। जो पहले अपनी आत्मा की सेवा करता है। पहले अपनी आत्मा को जगाता, अपने मन को मारता, अंकुश प्राप्त करता है और फिर दूसरे का कराता है। अपने शरीर की सेवा करते हुए जैसे खिलाना, शरीर को गर्मी ठंडी से बचाना जो दूसरों की सेवा में लगा रहता है, जो दूसरों के लिए करता है उसकी कीमत रहती है, महत्व बढ़ जाता है। आत्मधन के सामने धनी मानी लोग फीके पड़ जाते हैं। महसूस भी करते हैं। किसी के अंदर आत्मबल, आत्मशक्ति है और वह कोई बात कहता है, सत्य हो गया तो दूसरा पैसे वाला विद्वान मान लेता है, मुरीद हो जाता है।

सतसंगी, सेवादारों को ये पता नहीं चलता की उनमें क्या शक्ति है या गुरु कब दया ताकत दे करके आगे बढ़ा देंगे

जिनको छोटे लोग, सेवादार सेवक कहते हो, ये कभी-कभी बड़े-बड़े विद्वानों को ऐसा समझा देते, बोल देते हैं कि बैठा रह जाता है, रात भर वहीं आग के पास रात गुजार देता है। बहुत पहले बहादुरगंज नेपाल में बाबा जयगुरुदेव के कार्यक्रम में एक डीएसपी साहब देर रात दर्शन के लिए आया। उनको बताया कि गुरु महाराज अब लेट गए हैं। किसी ने कहा कि पेशाब करने के लिए जब उठेंगे, जब इधर आएंगे तब आपको दर्शन करा दूंगा लेकिन समय निश्चित नहीं है। तो रात को पहरे पर लगे दो सेवादारों (हरियाणा और मुरादाबाद से आये हुए) के साथ बैठ गए। दोनों उनसे बातचीत करते रहे, समझाते रहे। 3-3:30 बजे तक वह बैठे रह गए। और फिर सुबह जब हम उठे, मिले तब उन्होंने कहा कि मेरी इच्छा ही नहीं हुई यहां से जाने की। बताया कि उस इलाके का एक बड़ा बदमाश बहुत परेशान किये हुए था। वो भग करके भारत में अपने रिश्तेदारी में गया था। वहां उसके रिश्तेदार इन बाबा जयगुरुदेव के पास जा रहे थे। तो फिर वह जब लौट कर के (नेपाल) आया तो मेरे पास ही आया, पैर छुआ, कहा आप मेरे मां-बाप हो, आज से हमने सब बुरा काम छोड़ दिया। अब आप मेरे लिए जैसा चाहो वैसा करना। मैंने खुफिया आदमी भी उसके पीछे लगाया लेकिन फिर उसकी एक भी गलती न सुनी न देखी न किसी ने उसकी कोई शिकायत करी। हम सोचे कि कौन से ऐसे बाबा है कि जो ऐसे आदमी को बदल दिए। तो ड्यूटी की वजह से सतसंग में नहीं आ पाया लेकिन मेरी इच्छा जग गयी और दर्शन करने आ गया। यह दोनों भगत लोग मुझको रात बैठाए, जगाए रहे। गुरु महाराज रात 3-3:30 बजे से लोगों से मिलना-जुलना शुरू कर देते थे। तो दर्शन की लाइन में मैंने उनको बाकियों के समान बैठे हुए देखा।

सेवा का अवसर मिला है, चूको मत

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