मुक्ति मोक्ष का रास्ता केवल मानव तन में ही है इसलिए उसे पाने के लिए सब देवी-देवता तरसते रहते हैं

भूमि जगाने के लिए भूमि पूजन करते हैं

उज्जैन (म.प्र.)
जिस अनमोल मनुष्य शरीर में से होकर ही मुक्ति मोक्ष का रास्ता जाता है, जो देवताओं के पास भी नहीं है, उस मानव तन का महत्त्व बताने वाले, अपने रहने, सतसंग और साधना के द्वारा भूमि को जगाने की पॉवर रखने वाले, मनुष्य शरीर में रहते हुए और ये नश्वर तन छोड़ने के बाद भी अपने अपनाए हुए जीवों की निरंतर संभाल होती रहे ऐसी पक्की व्यवस्था बनाने वाले, चाहे डांट के चाहे प्रेम से या चाहे कैसे भी हो लेकिन अपने जीवों को भटकने नहीं देने के लिए कटिबद्ध, अपने जीवों की इस दुनिया में और साधना में मदद करने वाले, उनके लिए खुद रास्ता बना देने वाले, अवरोधों को दूर कर देने वाले, इस समय के महापुरुष, त्रिकालदर्शी, दयालु, पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 25 अक्टूबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जीवात्मा दोनों आँखों के बीच बैठी हुई है और इस शरीर को चलाती है।

ये ताकत और प्राणों को खींचने का, आपको इनका दर्शन करने का यह सिस्टम, ऊपरी लोकों के धनियो में नहीं है। गणेश जी शिवलोक, ब्रह्मा लोक में नहीं जा सकते हैं। ऐसे ही यह ऊपर नहीं जा सकते हैं। यह सब तरसते रहते हैं मनुष्य शरीर के लिए, थोड़े समय के लिए हमको मनुष्य शरीर मिल जाता और हम अपना काम बना लेते। हम इससे छुट्टी पा जाते। क्योंकि दु:ख उनको भी परेशान करता है। आपको दु:ख ज्यादा परेशान करता है। जैसे आप इतने लोग बैठे हो, कोई ज्यादा कोई कम दु:खी हो लेकिन दु:खी तो सब हो। सुख भी इसी तरह से, कोई ज्यादा कोई कम सुखी। जो ज्यादा लिप्त रहता है, सुख की तलाश करता रहता है, जिसको सुख जल्दी नहीं मिलता है, वो ज्यादा परेशान रहता है। और जो दुनिया का त्याग करता है, मन का इन्द्रियों की तरफ से हटाव करता है, वह सुखी होता है। दु:ख और सुख यह नहीं छोड़ता है। वहां भी इसी तरह से उनको नहीं छोड़ता है। तो सब परेशान रहते हैं। जितने भी देवी-देवता, ब्रह्मा विष्णु महेश और आद्या, यह सब के सब दु:खी हैं। आद्या का स्थान ऊपर कंठ चक्र पर है। ब्रह्मा विष्णु महेश सब अपनी इन माता को प्रणाम करते रहते हैं। अब मन बन रहा है आपको गहराई में सतसंग सुनाने का।

भूमि जगाने के लिए भूमि पूजन करते हैं

महाराज जी ने 24 अक्टूबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि सतसंग की इतनी बड़ी महिमा है कि जिस स्थान पर सतसंग होता है, वह स्थान भी जग जाता है। अब भी अनुष्ठान, यज्ञ आदि करने पर भूमि को जगाते हैं, भूमि पूजन करते हैं। जमीन पर जहां लोग साधना करते हैं, सन्त रहते हैं, सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से एक जगह पर साधना होती है, वह भूमि भी जग जाती है। भूमि (जमीन) पर बैठ कर के जब साधक साधना करता है, तार जब उस मालिक से जुड़ जाता है तब मालिक की ताकत शरीर में से होकर के जमीन में भी चली आती है। जिसको कहते हो अर्थ कर दो, तड़ित चालक लगाते हैं। बिजली ऊपर से गिरे तो इसी तार के सहारे से जमीन के अंदर चली जाए। इसी तरह से भूमि भी जग जाती है। उस भूमि की जागृति तब तक बनी रहती है जब तक वहां कोई पाप न करें, उसको गंदा न करे। यही कारण है जहां पर सन्त, साधक रहे उस भूमि को भी लोग प्रणाम करते हैं। लेकिन यह ज्यादा दिनों तक नहीं चलता है। कुछ ही समय में स्वार्थी मलिन बुद्धि के मनमुख लोग वहां रहने लगते हैं तब उस उस स्थान का महत्व खत्म हो जाता है।

अंतर में गुरु को अपना हाथ पकड़ाओ

महाराज जी ने 2 अक्टूबर 2020 सांय इंदौर ने बताया कि गुरु (इस दुनिया से) के जाने के बाद भी जीव को छोड़ते नहीं है। जिस जानशीन उत्तराधिकारी को अपना काम सौंपते हैं, उसे जीवों को संभालने का पूरा अधिकार दे देते हैं, बोली से, वाणी से, कहने से , डांट फटकार से, प्रेम से कि इनको संभाले रहो, समझाते रहो कि यह भटकने न पाए, चूक न जाए, इनका जीवन का समय बर्बाद न हो जाए, यह मानव तन, नामदान पाकर के फिर न भटक जाए। यह तो कहलवाते रहते, चैतन्यता दिलाते रहते हैं लेकिन सुरत की संभाल वहीं (गुरु पद स्थान) से करते रहते हैं। तो एक बार उनको वहां अपना हाथ पकड़ा दो। ध्यान लगाकर के हाथ को पकड़ाया जा सकता है। भजन में जब जीवात्मा के कान में जब वह आवाज़ (शब्द) पड़ती है वो जीवात्मा को पकड़कर के ऊपर खींच ले जाती है तो जीवात्मा वहां पहुंच जाती है। फिर पता चल जाता है कि यह आवाज कहां से निकल रही है। जैसे-जैसे नजदीकपन आता-जाता है, आवाज क्लियर होती, बढ़ती रहती है। एक समय ऐसा आता है यह नाम जो आपको (नामदान देते समय) बताया गया, इसी नाम तक भी पहुंच जाता है और नाम से जो आवाज निकल रही है, जिस धनी की आवाज, स्थान की आवाज निकल रही है वहीं तक पहुंच जाता है। अगर इसमें, नीचे के लोकों में समावेश हो जायेगा तो पड़ा रहना पड़ेगा। सन्तों के बहुत से जीव अब भी पड़े हुए, आगे नहीं बढ़ पाए क्योंकि कोई उनकी संभाल करने, बढाने वाला नहीं मिला। जब गुरु बराबर याद रहते हैं तो गुरु ऊपरी लोकों में भी बराबर मदद करते, रास्ता दिखाते हैं। जैसे आपको किसी को कहीं ले जाना हो, रास्ता बताना हो और आप जब रास्ते में पड़े कांटे को देखोगे तो खुद हटा दोगे, खुद गंदगी साफ कर दोगे, रास्ता बना दोगे कि इधर से चले जाओ। ऐसे ही गुरु बाधाएं टालते जाते हैं, रास्ता बनाते जाते हैं और जीवात्मा को उस मालिक तक पहुंचा दिया करते हैं।

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