दया से, संस्कार जागने से, अच्छी आशा बनने की वजह से आपका जन्म भारत में हुआ, आप भाग्यशाली हो

जितेन्द्र प्रजापति की रिपोर्ट

96 करोड़ श्वासों की पूंजी गिन कर के मिली है, सदुपयोग करो, मन को रोको नहीं तो समय व्यर्थ चला जायेगा

उज्जैन (मध्य प्रदेश)
केवल खाने-पीने, मौज-मस्ती में ही अपना अमूल्य जीवन बर्बाद नहीं करने की शिक्षा देने वाले, इस अनमोल मनुष्य शरीर पाने का असला उद्देश्य को बताने वाले, उस लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग नामदान देने वाले, उस रास्ते पर चलाने वाले, बाहर और अंतर में पूरी मदद करने वाले, अपने असला घर सतलोक चलने की आशा बंधाने वाले, तन-मन-धन को परमार्थ में लगाने वाले, इतनी बड़ी मायावी दुनिया में भटकने से बचाने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 1 सितम्बर 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि मन त्रिकुटी स्थान से जीवात्मा के साथ यहां पर उतर आया और इसे विषय वासनाओं में फंसा दिया क्योंकि मन माया का अंश है। मन की डोर माया के हाथ में है।

माया अपना फैलाव कर रखा है जीवो को फंसाने के लिए। जब आदत खराब बन गई तो मन बार-बार उधर ही ले जाता है। फिर इस शरीर से बुरे कर्म बनने पर, बुरे विचार आने पर, बुरी भावना भरने पर तब अध्यात्म, सतगुरु अच्छे नहीं लगते, यहां तक कि भगवान भी भूल जाते हैं। प्रेमियों! आप उन लोगों से तो अच्छे हो जो भगवान को बिल्कुल नहीं मानते हैं। वह तो कहते हैं कर्म ही पूजा है। उनको खाने पहनने रहने का तरीका नहीं मालूम। बहुत से लोग इसी तरह से जीवन बिता रहे। वो तो मनुष्य होते हुए भी, देव दुर्लभ मनुष्य शरीर पाते हुए भी, जिस शरीर में राम, कृष्ण, महावीर, गोस्वामी, पलटू, नानक, दादू, गुरु महाराज जैसे सन्त रहे, इस शरीर को पाते हुए भी पशु-पक्षी के समान खाते बच्चा पैदा करते संसार से चले जा रहे हैं, उसी तरह से वह भी अपना जीवन बना लिए हैं।

जिनकी जहां आशा बनी रहती है उसका जन्म वही होता है

प्रेमियों! आप पर दया हुई, आपके संस्कार जगे और आप भारत देश में जन्म लिए। तीन लोक नौ खंड बताया गया। नौ खंड में भारत खंड है। आर्यों, ऋषि मुनियों, सन्तों, अवतारी शक्तियों का यह देश बताया गया। यहीं पर ज्यादा अवतारिक शक्तियां, ऋषि मुनि, योगी योगेश्वर, सन्त सतगुरु, मालिक तक पहुंचे हुए लोग और प्रभु तक पहुंचाने की युक्ति बताने वाले लोग, सब यहीं हुए। जिनके संस्कार अच्छे रहते हैं, जिनकी इच्छा प्रबल रहती है कि अपने शरीर के रहते-रहते आत्मा का कल्याण कर लें, जिसके लिए मनुष्य शरीर मिला, वह हमारा असला काम पूरा हो जाए, नर्क-चौरासी से, पाप कर्मों से, मृत्युलोक में आने से, तकलीफ झेलने से, जन्मने-मरने से बच जाएं, उनकी इच्छा रहती है लेकिन परिस्थितियां अनुकूल नहीं रहती हैं, रास्ता बताने वाले, संभाल करने वाले, युक्ति बताने वाले के पास नहीं पहुंच पाते हैं तो आशा बनी रह जाती है तो -जिन आशा तिन वासा पाया, लौट लौट चौरासी आया। यह निश्चित है कि जिनकी जहां आशा बनी रहती है, उसका जन्म वहीं होता है।

सूम कंजूस का धन बेकार जाता हैं

लोग कहते हैं सूम कंजूस का धन बेकार जाता है। बहुत से लोग इकट्ठा करते रहते हैं। राजा महाराजा लूटपाट करके लाए, खजाना भर दिया, उसका उपयोग नहीं कर पाए। किसी के निमित्त भी नहीं खर्च कर पाए क्योंकि जो मारे-काटे, हिंसा-हत्या की उसके पाप से उनकी बुद्धि खराब हो गई। अच्छे लोगों को देने, खिलाने, अच्छा काम करने में नहीं खर्च कर पाए तो कबूतर चिड़िया सांप बनकर के महल में घूमते, उसकी रखवाली करते हैं। तो जिन आशा तिन वासा पाया। जैसा साथ पड़ जाए वैसी अच्छी या बुरी आशा बन जाती है। बुरे का साथ कर लो तो बुरी भावना आ जाएगी, बुरी आशा बनी रह जाए। सतसंग सुनो, अच्छे, सन्त, सतसंगी, साधक का साथ करो तो अच्छी आशा बनती है। पहले जन्म के, सैकड़ों साल पहले के संस्कार पड़े रहे तो उनको यहां भारत में जन्म मिल गया। आप कुछ लोग यहाँ ऐसे हो कि जिनको सतसंगी परिवार में जन्म मिला, ज्यादा भटकना खोजना नहीं पड़ा, आप अपने माता-पिता परिवार वालों के साथ गुरु महाराज के पास पहुंच गए और गुरु महाराज की आपके ऊपर दया हो गए और आपको नाम दान दे दिया और आप भजन में लग गए।

आप भाग्यशाली हो जिनको नामदान मिला

आप ऐसे लोग भाग्यशाली हो, चाहे आप यहां पर हो, चाहे नाम दान ले करके अपने बच्चों की सेवा करते हुए, पेट पालने के लिए काम करते हुए और ध्यान भजन में समय दे रहे हो। लेकिन ऐसे लोगों से मुझे कहना है कि अगर आप समय भी दोगे, शरीर को रोकोगे भी, इससे आप और काम नहीं कराओगे, अपराध, कर्मों से इसको बचाओगे लेकिन मन आपका नहीं रुकेगा, मन मनसा पाप करता रहेगा, मन से सोचते रहोगे, दूसरे की निंदा-बुराई करते रहोगे, मन से देश समाज मानव विरोधी काम अगर करते रहोगे तो यह मन उधर रम जाएगा, उधर चला जाएगा। शरीर तो स्थिर रहेगा लेकिन मन भटकता रह जाएगा और भटकते-भटकते यह 96 करोड़ सांसों की पूंजी (यानी आयु) जो आपको खर्च करने के लिए मिली है, खत्म हो जाएगी। फिर इस शरीर की कोई कीमत नहीं रह जाएगी।

शरीर के छूटने के बाद इसकी कोई कीमत नहीं रह जाएगी, मिट्टी कहलाता है

जिस शरीर को आप सजाते-संवारते तेल साबुन लगते, अच्छे कपड़े पहनाते, अच्छे मकान गाड़ी में ले जाते हो, आपकी योग्यता डिग्री डिप्लोमा कुर्सी पद प्रतिष्ठा धन की वजह से जो लोग अभी आपको सम्मान देते हैं वही लोग इसको मिट्टी कहने लग जाएंगे। परिवार के लोग जो अभी सेवा करते हैं, कहते हैं कि आपके बगैर जिंदा नहीं रह सकता हूं, पत्नी कहती है कि सती हो जाऊंगी, पत्नी के लिए पति कहता है कि मैं सता हो जाऊंगा, जल करके मर जाऊंगा, यही सब उस वक्त पर सब भूल जाएंगे और ले जा करके उसको जला करके रख कर देंगे। इसकी कोई कीमत नहीं रह जाएगी, उसके बाद कोई नाम लेवा भी नहीं रह जाएगा। इसलिए समय रहते चेतो और समय के समरथ सन्त सतगुरु को खोज कर अपनी जीवात्मा के कल्याण का रास्ता ले कर जीते जी मुक्ति मोक्ष प्राप्त कर लो, प्रभु को प्राप्त कर लो।

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