जैसे बेटा कर्जा लेकर न चुका सके तो बाप चुकाता है, सन्त भी अपने जीवों द्वारा कर्मों (की सजा) को न भोग पाने पर खुद भोगते हैं

आपने अभी तक इन्हीं दुनियावी फायदे की बातों पर विश्वास किया है, जीवात्मा के कल्याण पर नहीं

इस समय साधु बन जाने पर भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती है

निजधाम वासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 26 सितंबर 2020 प्रातः गाजियाबाद (उ.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जो मनुष्य शरीर में आते हैं सबको कर्मों की सजा भोगनी पड़ती है। अगर बेटा कर्जा ले लेता है तो बाप को चुकाना पड़ता है, बेटा कोई अगर वादा कर लेता, कोई सौदा तय कर लेता है तो बाप उसको मान लेता है, बेटे ने कह दिया है तो चलो इतने में ही हम दे देते हैं तो इनका संबंध होता है। ऐसे ही सन्तों का अपनाए हुए जीवों से संबंध होता है। तो जीव कर्मों को जब भोग नहीं पाते हैं तो सन्त खुद भोगते हैं। कर्मों को काटने का उपाय भी बताते हैं लेकिन यह पामर जीव समझ नहीं पाता है, लोग समझ नहीं पाते हैं, कर नहीं पाते हैं तो उनको भोगना पड़ता है। तो कर्मों की सजा सबको भोगनी पड़ती है। मनुष्य शरीर में कोई कर्मों से नहीं बचा। यह कर्मों की सजा जल्दी नहीं जाती है। दवा बहुत अच्छी खा लो, डाक्टर बहुत अच्छा मिल जाए लेकिन जो कर्मों का लेना-देना है वह उससे अदा नहीं हो सकता है। मान लो किसी का कर्जा किसी ने ले लिया, किसी ने किसी को मार कर के धन हड़प कर लिया, अब वह बन गया भूत और सिर पर वह सवार है, अपना कर्जा वसूल रहा है तो यह कर्जा कैसे अदा होगा? इन सारी चीजों का, कर्जे का उपाय होता है। इनका नियम होता है। क्या? जैसे गर्मी, सर्दी, बरसात सूर्य चंद्रमा धरती पेड़ पौधे आदि सब बनाए गए हैं किसके लिए? हित के लिए। इसी तरह से जो महात्मा सन्त आए वह कर्ज को अदा करने, तकलीफों से बचाने के लिए नियम-कानून बनाए, युक्ति निकाले, तरह-तरह का उपाय उन्होंने निकाला।

आपने अभी तक इन्हीं बातों पर विश्वास किया है

महाराज जी ने 8 जुलाई 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिये संदेश में बताया कि आपने अभी तक विश्वास किस बात पर किया? धन पुत्र परिवार मान प्रतिष्ठा बढ़ने पर, नौकरी मिलने, व्यापार चल जाने, खेत की पैदावार बढ़ जाने, मुकदमा जीत जाने पर यानी दुनिया का, शरीर का संकट दूर हो जाने पर विश्वास किया। लेकिन आत्मा को आप समझ, देख नहीं पाए। वह संकट में, बंधन में इस शरीर के अंदर वह पड़ी हुई है। उसकी गांठ को जो खोलोगे, उसको जेल खाने से जब निकाल लोगे और अपने घर अपने मालिक के पास जब जाएगी तब आपको सुकून शांति मिलेगी, आपका इस मनुष्य शरीर के पाने का असला काम पूरा होगा। इसलिए जिनको नाम दान मिल गया आप सब लोग बराबर भजन ध्यान सुमिरन करो जो गुरु महाराज आपसे बराबर कहते कराते रहे।

साधु बन जाने पर भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती है

महाराज जी ने 2 जुलाई 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि इस समय पर सन्यास इसीलिए मना किया गया कि संन्यासी जीवन में, साधु बन जाने पर, जंगल चले जाने पर भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती है क्योंकि सुरत शब्द योग की साधना ही उस मालिक के दर्शन की, देवी-देवताओं के दर्शन की साधना है, वेदवाणी आकाशवाणी को सुनने का तरीका है। फिर यह नहीं हो सकता है क्योंकि इस शरीर की जरूरत पड़ेगी। यह भी कहा गया इसी (गृहस्थी) में रहो। इसका भी ध्यान रहे। लेकिन एकदम से इसी में ध्यान मत लगाए रहो। जरूरत पड़ने पर शरीर के लिए काम कर लो। और जरूरत जब न हो तो बेकार की चीजों को इकट्ठा मत करो। हमेशा याद रखो, जो भी सामान हम इकट्टा करते हैं यह हमारे कोई काम आने वाला नहीं है। यह सारा सामान यह सारे रिश्ते इस शरीर के लिए ही है। और यह सार्वभौमिक सत्य है, 16 आना शत प्रतिशत सत्य है कि यह शरीर छोड़ना पड़ेगा।

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